टीवी कलाकारों ने बताया उनके होमटाउन में जन्माष्टमी का त्यौहार कैसे मनाया जाता है!

जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का त्योहार है और इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। दुनियाभर के लोग अपने-अपने तरीकों से यह त्यौहार मनाते हैं। एण्डटीवी के कलाकार बता रहे हैं कि यह त्यौहार उनके होमटाउन में कैसे मनाया जाता है। इन कलाकारों में शामिल हैं अमित भारद्वाज (नये शो ‘भीमा’ के मेवा), आशुतोष कुलकर्णी (‘अटल’ के कृष्ण बिहारी वाजपेयी), गीतांजलि मिश्रा ( ‘हप्पू की उलटन पलटन’ की राजेश) और शुभांगी अत्रे (‘भाबीजी घर पर हैं‘ की अंगूरी भाबी)। ‘भीमा‘ में मेवा की भूमिका निभा रहे अमित भारद्वाज ने कहा, ‘‘पटना में जन्माष्टमी का त्योहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है। मंदिरों को खूबसूरती से सजाया जाता है, चारों ओर प्रार्थनायें गूंजती हैं और भक्तिगीतों से पूरे दिन का कार्यक्रम तय हो जाता है। रास लीला जैसे पारंपरिक नृत्यों में भाग लेने वाले लोग मगन रहते हैं और पूरे शहर का माहौल जीवंत एवं उत्सव जैसा लगता है। मेरे होमटाउन पटना में जन्माष्टमी का उत्सव शानदार होता है। चमकीले पीले परिधानों से सजे भगवान कृष्ण को छप्पन भोग लगाया जाता है। एक पालकी को फूलों से सजाया जाता है और भगवान के सम्मान में पूरे दिन भजन गाये जाते हैं।’’ अटल में कृष्ण बिहारी वाजपेयी की भूमिका निभा रहे आशुतोष कुलकर्णी ने बताया, ‘‘महाराष्ट्र में जन्माष्टमी बड़े उत्साह और ऊर्जा के साथ मनाई जाती है। आप जहाँ भी देखेंगे, लोग मानव पिरामिड बनाते दिखाई देंगे और दही हांडी तक पहुँचकर उसे तोड़ने की कोशिश करेंगे। दही हांडी में दही, दूध, फल और मिठाइयाँ भरी होती हैं। पूरे उत्सव का वातावरण उत्साह से भरपूर और अलौकिक होता है। पुणे में पला-बढ़ा होने के कारण मेरा सौभाग्य रहा कि मैं इस परंपरा का साक्षी हूँ। हर गली-नुक्कड़ पर लोग दही हांडी के आयोजन के लिये इकट्ठे हो जाते हैं और जब हम छोटे थे, तब उसका एक भी पल देखने से नहीं चूकते थे। हम दौड़-दौड़कर हर सीन देखते थे और यह देखने के लिये रोमांचित रहते थे कि आखिर में दही हांडी कौन तोड़ेगा। मंदिरों की सजावट और भक्तिगीतों से वातावरण अलौकिक हो जाता था। लेकिन ढोल की ताल पर नाचना और ‘गोविंदा आला रे आला’ गाना मुझे सबसे ज्यादा पसंद था। इसके बाद हम पूरन पोली और दूसरे पारंपरिक पकवानों पर टूट पड़ते थे, जिन्हें मेरी माँ बड़े प्यार से बनाती थीं।’’

‘हप्पू की उलटन पलटन‘ में राजेश की भूमिका निभा रहीं गीतांजलि मिश्रा ने कहा, ‘‘यूपी का जन्माष्टमी उत्सव किसी सपने से कम नहीं होता है। बीते समय में मुझे उसमें भाग लेने का सौभाग्य मिला है। कई लोग मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में उत्सव के लिये इकट्ठे हो जाते हैं। कलाकार कृष्ण रासलीला का प्रदर्शन करते हैं और उनमें से कुछ तो इतने सम्मोहक होते हैं कि भगवान कृष्ण के भक्तों को झूमने पर मजबूर कर देते हैं। जन्माष्टमी का उत्सव मेरे गृहनगर वाराणसी में भी भव्य होता है। मेरी दादी माँ खास प्रसादी बनाती हैं, जैसे कि मलाईपेड़ा, चरणामृत और धनिया पंजीरी। यह प्रसादी भगवान कृष्ण को चढ़ाई जाती है। फिर हम घर की बनी यह प्रसादी बांटने के लिये मंदिर जाते हैं और वहाँ गाये जा रहे भजनों में शामिल हो जाते हैं। जब मैं छोटी थी, तब मैंने अपनी माँ से राधा जैसे परिधान मांगे थे। मुझे उन्हें पहनने की खुशी आज भी महसूस होती है। भगवान कृष्ण हम सभी को प्रेम और सौहार्द्र का आशीर्वाद दें। आप सभी को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं!’’ ‘भाबीजी घर पर हैं‘ में अंगूरी भाबी की भूमिका के लिये मशहूर शुभांगी अत्रे ने कहा, ‘‘मुझे बहुत अच्छे से याद है कि इंदौर में जन्माष्टमी के दौरान पूरे दिन मंदिरों को बेहतरीन तरीके से सजाया जाता है और विशेष रीतियाँ निभाई जाती हैं। लोग उपवास रखते हैं, प्रार्थना करते हैं और आत्मा को छूने वाले भजन गाते और नाचते हैं। शहर का माहौल खुशनुमा हो जाता है, उसमें कई सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और आयोजन होते हैं। मेरे पिता और मैं मशहूर लक्ष्मीनारायण मंदिर जाते थे, जिसे बिरला मंदिर या कृष्णा परनामी मंदिर भी कहा जाता है। वहाँ का उत्सव भव्य होता है और हम वहाँ आशीर्वाद लेने जाते थे। घर पर मैं फर्श पर छोटे बच्चे के पदचिन्ह बनाती थी, जो बाल कृष्ण के चरण होते थे। हम आरती के लिये आधी रात तक जागते थे और माखन मिश्री, लौकी की बर्फी, मखाना खीर, आदि जैसी चीजें बनाते थे। यह चीजें मेरी माँ और दादी माँ बनाती थीं और फिर भगवान कृष्ण को चढ़ाती थीं। इस बार मेरी बेटी आशी मुंबई में है, इसलिये मैं यह सभी काम दोहराऊंगी।’’

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